परमात्मा कौन हैं who is god
गरीब, ऐसा अबिगत राम है, गुन इन्द्रिय सै न्यार। सुंन सनेही रमि रह्या, दिल अंदर दीदार।।3।।
गरीब, ऐसा अबिगत राम है, अपरम पार अल्लाह। कादर कूं कुरबान है, वार पार नहिं थाह।।4।।
गरीब, ऐसा अबिगत राम है, कादर आप करीम। मीरा मालिक मेहरबान, रमता राम रहीम।।5।।
गरीब, अलह अबिगत राम है, बेच गूंन चित्त माहिं। शब्द अतीत अगाध है, निरगुन सरगुन नाहिं।।6।।
सरलार्थ :- कबीर जी ऐसे अविगत राम हैं जो तीनों गुणों तथा भौतिक शरीर की इन्द्रियों से न्यारे हैं। उनका शरीर तथा सामर्थ्य सबसे भिन्न और अधिक है। उसका कोई
अन्त नहीं है। वह बेचगून यानि अव्यक्त है। जैसे सूर्य के सामने बादल छा जाते हैं, उस समय सूर्य अव्यक्त होता है। उसी प्रकार परमात्मा और आत्मा के मध्य पाप कर्मों के बादल अड़े हैं। जिस कारण से परमेश्वर विद्यमान होते हुए भी अव्यक्त है, दिखाई नहीं देता।
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