test for pupils

यदि कोई व्यक्ति अपने आप ही गुरु बन कर शिष्य बना लेता है तो समझो अपने सिर पर भार चढ़ा लेता है। क्योंकि परमेश्वर का नियम है कि जब तक शिष्य पार नहीं होगा तब तक गुरु को बार-2 जन्म लेते रहना पड़ता है। पूर्ण गुरु अधूरे शिष्यों से छुटकारा पाने के लिए ऐसी लीला किया करते हैं   जिससे अज्ञानी शिष्यों को गुरु के प्रति नफरत हो जाती है। जैसे कबीर साहेब जब काशी में प्रकट हुए थे। उस समय कबीर साहेब ने के चौसठ लाख शिष्य बन गए थे। उनकी परीक्षा लेने के लिए कबीर साहेब ने काशी शहर की एक मशहूर वैश्या को सतसंग ज्ञान समझाने के लिए उसके घर पर जाना शुरु कर दिया। जिसको देख व सुन कर चेलों के दिल में गुरु के प्रति घृणा पैदा हो गई और सभी का अपने गुरु के प्रति विश्वास टूट गया। केवल दो को छोड़ कर सभी शिष्य गुरु विहीन हो गए। सतगुरु गरीबदास जी महाराज की वाणी में प्रमाण है :--
गरीब, चंडाली के चौंक में, सतगुरु बैठे जाय। चौसठ लाख गारत गए, दो रहे सतगुरु पाय।।
भड़वा भड़वा सब कहैं, जानत नाहिं खोज। दास गरीब कबीर करम से, बांटत सिर का बोझ।

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