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naag pooja

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 नाग पूजा से क्या तात्पर्य है जाने के लिए यह ब्लॉग अवश्य पढ़ें।  आदिकाल मानव प्रकृति पर आश्रित था और भय के आधार पर विभिन्न प्रकार की पूजाएं करता था जिस चीज से ज्यादातर भय होता था उसी की पूजा करके अपने बचाव के साधन खोज रहा था इसी क्रम में पृथ्वी पर रेंगने वाले जीव विशेषकर विषैले जानवर जिसके डसने मनुष्य की मृत्यु हो जाती है उसी क्रम में शायद उस नाग से बचने के लिए उसने नागों की पूजा करना शुरू कर दिया।  लेकिन सच्चाई यह है कि आज के प्रमाणित शास्त्र जैसे चारों वेद और उनका सार भागवत गीता में एक अविनाशी परमात्मा के अतिरिक्त किसी की पूजा करने को सार्थक नहीं बताया। इसी क्रम में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज हमें यह बताते हैं कि एक अविनाशी परमात्मा कबीर परमेश्वर को छोड़कर अन्य किसी भी प्रकार की देवी देवताओं की पूजा करना मनुष्य जीवन के लिए कदापि उचित नहीं है क्योंकि यह मानव जीवन मोक्ष प्राप्ति के लिए प्राप्त होता है और उस मोक्ष की प्राप्ति एक अविनाशी परमात्मा पूजा से हो सकती है 

सही शिक्षा क्या है

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 बढ़ते हुए भौतिकवाद के आधार पर आज के जमाने में शिक्षा का क्या महत्व है सच्ची व सही शिक्षा का जीवन में क्या उपयोग है योग है यह जानना बहुत ही जरूरी है महात्मा गांधी के अनुसार, ”  सच्ची शिक्षा  वह है जो बच्चों के आध्यात्मिक, बौद्धिक और शारीरिक पहलुओं को उभारती है और प्रेरित करती है।  ... स्वामी विवेकानन्द के अनुसार, “ शिक्षा  व्य क्ति में अंतर्निहित पूर्णता की अभिव्यक्ति है।”  सही शिक्षा मनुष्य को एक जीवन जीने की कला सिखाते हैं उसके लिए एक मार्ग प्रशस्त करती है और इस जीवन में हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए यह भी ज्ञान कराती है  सही शिक्षा मानव जीवन को सरल बनाती जाती है  विकट परिस्थितियों में  जीवन कैसे जिया जाता है यह भी सिखा देती है और इस मनुष्य जीवन का मूल उद्देश्य अर्थात हम हमेशा के लिए जन्म मरण के रोग से छुटकारा कैसे पा सकते हैं यह भी एक सही शिक्षा का परम उद्देश्य होता है  हम सभी प्राणी चाहे किसी भी धर्म से संबंधित हो एक ही बाात मानते है कि हम सबका मालिक एक है वह एक परमात्मा कौन है वह कैसे प्राप्त किया जाता है इसका ज्ञान भी  सही शिक्षा द्वारा ही होता है  शिक्

काशी में करौंत

एक प्राचीन मान्यता थी कि भगवान शिव ने लंबे समय पहले एक शराब दिया था जिसमें कहा जो आत्मा मानव शरीर मगहर शहर में शरीर त्याग करेंगी वह सीधे नर्क में जाएगी और जो व्यक्ति या प्राणी काशी शहर में जीवन लीला समाप्त करेंगे वै स्वर्ग में जाएंगे मान्यता प्रबल होती गई बुद्धिजीवी वर्ग अपने परिवार के बुड्ढे बुर्जुगों  को   स्वर्ग भेजने की बाबत काशी शहर में लाने लगे लेकिन बूढ़े बुजुर्गों की संख्या अधिक होने एवं उनकी सेवा की समस्या आने के कारण काशी के पंडो और ब्राह्मणओ ने एक योजना बनाई कि जो शीघ्र परमात्मा के दरबार में पहुंचना चाहते हैं उनके लिए भगवान के दरबार से एक करोत आता है जिस पर परमात्मा की दया होगी उसी पर करोन्त आएगा  अब उन बुजुर्गों ने सोचा की जाना तो कल भी है तो क्यों नहीं आज ही इस में अपना सिर दे दे जिससे भगवान के दरबार में जल्दी पहुंच जाएंगे इस प्रकार ब्राह्मण लोग उन बूढ़े बुजुर्गों की गर्दन पर करोंत चलाकर उन्हें मारने लगे और ऊपर से इस एवज में उनके परिवार वालों से रुपए पैसे भी लेने लगे

Bible

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 पूर्ण परमात्मा जो सर्व  सृष्टि का रचनहार है उसकी तरफ से किसी भी प्राणी को मांस खाने का आदेश नहीं दिया गया इसी का प्रमाण है हमें बाइबिल ग्रंथ के उत्पत्ति में मिलता है उत्पत्ति 1 :29 में लिखा गया है कि पूर्ण परमात्मा ने सर्वश्रेष्ठ की रचना करने के बाद में मनुष्यों को यह आदेश दिया है कि जो हरे-भरे पत्ते और घास है वह पशु को खाने के लिए दी है और जितने भी फलदार वृक्ष हैं उनके फल और अनाज इंसानों को खाने के लिए दिया गया है यह सिद्ध करता है कि मनुष्य को बाइबल के अनुसार मांस खाने का आदेश नहीं है

test for pupils

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यदि कोई व्यक्ति अपने आप ही गुरु बन कर शिष्य बना लेता है तो समझो  अपने सिर पर भार चढ़ा लेता है। क्योंकि परमेश्वर का नियम है कि जब तक शिष्य  पार नहीं होगा तब तक गुरु को बार-2 जन्म लेते रहना पड़ता है। पूर्ण गुरु अधूरे  शिष्यों से छुटकारा पाने के लिए ऐसी लीला किया करते हैं    जिससे अज्ञानी शिष्यों  को गुरु के प्रति नफरत हो जाती है। जैसे कबीर साहेब जब काशी में प्रकट हुए थे।  उस समय कबीर साहेब ने  के चौसठ लाख शिष्य बन गए थे। उनकी परीक्षा लेने के  लिए कबीर साहेब ने काशी शहर की एक मशहूर वैश्या को सतसंग ज्ञान समझाने  के लिए उसके घर पर जाना शुरु कर दिया। जिसको देख व सुन कर चेलों के दिल  में गुरु के प्रति घृणा पैदा हो गई और सभी का अपने गुरु के प्रति विश्वास टूट  गया। केवल दो को छोड़ कर सभी शिष्य गुरु विहीन हो गए। सतगुरु गरीबदास  जी महाराज की वाणी में प्रमाण है :-- गरीब, चंडाली के चौंक में, सतगुरु बैठे जाय। चौसठ लाख गारत गए, दो रहे सतगुरु पाय।। भड़वा भड़वा सब कहैं, जानत नाहिं खोज। दास गरीब कबीर करम से, बांटत सिर का बोझ।

52_Cruelities_On_GodKabir

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 आज से 600 साल पहले कबीर परमेशवर कमल के फूल पर अवतरित हुए थे उसके बाद लीला करते हुए 5 वर्ष की आयु में बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों  और मोलवियों के छक्के छुड़ा लगे उनके साथ ज्ञान चर्चा करने लगे और सभी को निरुत्तर कर रहे थे उस समय दिल्ली के शासक सिकंदर लोदी का धर्मगुरु शेखतकी था शेखतकी एशिया ईर्ष्यालु  स्वभाव का था बादशाह सिकंदर के जलन का रोग परमेश्वर कबीर जी के आशीर्वाद से ठीक हो गया तो उसके बाद सिकंदर ने कबीर जी को अपना धर्म गुरु बना लिया जिस कारण से शेखतकी सिकन्दर और कबीर जी दोनों से ही जलने लगा उसने अन्य मुस्लिम जनता से कह दिया कि हमारा बादशाह तो एक काफिर को अपना गुरु बना चुका है जिस कारण सिकंदर भी कुछ भयभीत सा रहने लगा तब उसने शशेखतकी के कहने पर समय-समय पर कबीर साहिब जी की परीक्षा लेता रहा जैसे कभी तेल के कढ़ाई पर तलना, कभी हाथी के सामने डाल देना ,कभी तालाब में डुबोने का प्रयास करना कभी कुएं में डालना कभी रात्रि में तलवार से वार करवाना कभी बंदूक के सामने लाना कभी मदमस्त हाथी के सामने छोड़ना ऐसी अनेक 52 कसौटियों ली फिर  भी  कबीर साहब जी के साथ कुछ थी लेख लेकिन शेख तकी को इसमें कभी सफलता नही

MagharLeela_Of_GodKabir

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To break the illusion of Hindu religious preachers that the one who dies in Magahar becomes a donkey in next life and the one who dies in Kashi goes to heaven, Kabir God, went to Satlok along with his body and in place of his body, fragrant flowers were found on the sheet tahaan vahaan chaadari phool bichhaaye, sijya chhaandee padahi samaaye. do chaadar dahoon deen uthaavain, taake madhy kabeer na paavain