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काशी में करौंत

एक प्राचीन मान्यता थी कि भगवान शिव ने लंबे समय पहले एक शराब दिया था जिसमें कहा जो आत्मा मानव शरीर मगहर शहर में शरीर त्याग करेंगी वह सीधे नर्क में जाएगी और जो व्यक्ति या प्राणी काशी शहर में जीवन लीला समाप्त करेंगे वै स्वर्ग में जाएंगे मान्यता प्रबल होती गई बुद्धिजीवी वर्ग अपने परिवार के बुड्ढे बुर्जुगों  को   स्वर्ग भेजने की बाबत काशी शहर में लाने लगे लेकिन बूढ़े बुजुर्गों की संख्या अधिक होने एवं उनकी सेवा की समस्या आने के कारण काशी के पंडो और ब्राह्मणओ ने एक योजना बनाई कि जो शीघ्र परमात्मा के दरबार में पहुंचना चाहते हैं उनके लिए भगवान के दरबार से एक करोत आता है जिस पर परमात्मा की दया होगी उसी पर करोन्त आएगा  अब उन बुजुर्गों ने सोचा की जाना तो कल भी है तो क्यों नहीं आज ही इस में अपना सिर दे दे जिससे भगवान के दरबार में जल्दी पहुंच जाएंगे इस प्रकार ब्राह्मण लोग उन बूढ़े बुजुर्गों की गर्दन पर करोंत चलाकर उन्हें मारने लगे और ऊपर से इस एवज में उनके परिवार वालों से रुपए पैसे भी लेने लगे

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 पूर्ण परमात्मा जो सर्व  सृष्टि का रचनहार है उसकी तरफ से किसी भी प्राणी को मांस खाने का आदेश नहीं दिया गया इसी का प्रमाण है हमें बाइबिल ग्रंथ के उत्पत्ति में मिलता है उत्पत्ति 1 :29 में लिखा गया है कि पूर्ण परमात्मा ने सर्वश्रेष्ठ की रचना करने के बाद में मनुष्यों को यह आदेश दिया है कि जो हरे-भरे पत्ते और घास है वह पशु को खाने के लिए दी है और जितने भी फलदार वृक्ष हैं उनके फल और अनाज इंसानों को खाने के लिए दिया गया है यह सिद्ध करता है कि मनुष्य को बाइबल के अनुसार मांस खाने का आदेश नहीं है

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यदि कोई व्यक्ति अपने आप ही गुरु बन कर शिष्य बना लेता है तो समझो  अपने सिर पर भार चढ़ा लेता है। क्योंकि परमेश्वर का नियम है कि जब तक शिष्य  पार नहीं होगा तब तक गुरु को बार-2 जन्म लेते रहना पड़ता है। पूर्ण गुरु अधूरे  शिष्यों से छुटकारा पाने के लिए ऐसी लीला किया करते हैं    जिससे अज्ञानी शिष्यों  को गुरु के प्रति नफरत हो जाती है। जैसे कबीर साहेब जब काशी में प्रकट हुए थे।  उस समय कबीर साहेब ने  के चौसठ लाख शिष्य बन गए थे। उनकी परीक्षा लेने के  लिए कबीर साहेब ने काशी शहर की एक मशहूर वैश्या को सतसंग ज्ञान समझाने  के लिए उसके घर पर जाना शुरु कर दिया। जिसको देख व सुन कर चेलों के दिल  में गुरु के प्रति घृणा पैदा हो गई और सभी का अपने गुरु के प्रति विश्वास टूट  गया। केवल दो को छोड़ कर सभी शिष्य गुरु विहीन हो गए। सतगुरु गरीबदास  जी महाराज की वाणी में प्रमाण है :-- गरीब, चंडाली के चौंक में, सतगुरु बैठे जाय। चौसठ लाख गारत गए, दो रहे सतगुरु पाय।। भड़वा भड़वा सब कहैं, जानत नाहिं खोज। दास गरीब कबीर करम से, बांटत सिर का बोझ।